बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र
प्रश्न- 'गुण' और 'कर्म' पदार्थों की विवेचना कीजिए।
उत्तर -
गुण एवं कर्म
गुण दर्शन का दूसरा पदार्थ है। गुण वह पदार्थ है जो द्रव्य में ही रहता है, परन्तु जिसमें और कोई गुण या कर्म नहीं रहता है। बिना किसी द्रव्य के गुण नहीं रह सकता है, इसी कारण इसे गुण, पर निर्भर तथा परतन्त्र कहा गया है। गुण का निवास द्रव्य में होता है। गुण कभी अकेला नहीं रहता है। गुण गुणरहित होता है, अर्थात् गुण का गुण नहीं होता बल्कि द्रव्य का गुण होता है। गुण में कर्म का भी अभाव होता है, क्योंकि इसमें गति नहीं होती है। गुण निष्क्रिय होता है। निष्क्रिय होता है तथा यह संयोग एवं वियोग का साक्षात् कारण नहीं है। गुण किसी वस्तु में गौण रूप में रहकर सहायक होता है। द्रव्य ही किसी कार्य का उपादान या समवायी कारण हो सकता है। गुण गौण रूप से उपादान में रहकर कार्य के होने में सहायक होता है इसलिये गुण केवल असमवायी कारण हो सकता है। सभी गुण द्रव्याश्रित होते हैं, गुण का गुण होना असम्भव है। अतः यह कहा जा सकता है कि गुण वह है जो द्रव्य में समवेत रहता है तथा गुण रहित होता है। गुण कर्म से भी शून्य होता है तथा संयोग एवं वियोग का साक्षात् कारण नहीं है। यह अपने कार्य का असमवायी कारण होता है।
गुण कर्म से भिन्न होता है। कर्म सक्रिय है तथा गुण द्रव्य का निष्क्रिय रूप है। गुण द्रव्य से भी भिन्न होता है, क्योंकि द्रव्य अपने अस्तित्व के लिए किसी अन्य सत्ता पर निर्भर नहीं करता है। द्रव्य स्वयं अस्तित्ववान होता है, लेकिन गुण अपने अस्तित्व के लिए द्रव्य पर निर्भर करता है। इसी कारण गुण को द्रव्याश्रित कहा गया है। गुण स्वतन्त्र नहीं होता है, परन्तु वैशेषिक दर्शन में इसे स्वतन्त्र पदार्थ के रूप में स्वीकार किया गया है, क्योंकि पदार्थ वह है जिसका नामकरण हो सके तथा जो ज्ञेय है। गुण का नामकरण होता है, इसी कारण उसे स्वतन्त्र पदार्थ माना गया है।
वैशेषिक दर्शन गुण के चौबीस भेद को स्वीकार करता है, तथा वे जो निम्नलिखित हैं - रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, शब्द, संख्या, परिमाण, पृथ्कत्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, बुद्धि, सुख दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, गुरुत्व, द्रवत्व, स्नेह, संस्कार, धर्म एवं अधर्म। इनमें से रूप, रस, गन्ध, स्पर्श एवं शब्द भौतिक हैं जबकि सुख, दुःख, बुद्धि, इच्छा, द्वेष, आदि मानसिक गुण है।
रूप एक विशेष गुण है जिसका प्रत्यक्ष आंखो से होता है। इसका निवास पृथ्वी, जल एवं अग्नि में है। उजला, नीला, लाल आदि इसके भेद होते हैं।
रस एक विशेष गुण है जिसका प्रत्यक्ष जिहवा से होता है। इसके छः भेद हैं मधुर, कटु, तीता, कषाय, लवण एवं नमकीन।
स्पर्श का प्रत्यक्ष त्वचा के द्वारा होता है। शीत, उष्ण एवं अशीतोष्ण इसके भेद हैं। गन्ध गुण का प्रत्यक्ष नाक से होता है। गन्ध का निवास पृथ्वी में है। इसके दो भेद हैं- सुगन्ध एवं दुर्गन्ध। यह अन्तिम गुण है। शब्द गुण का प्रत्यक्ष कान से होता है।
सांख्य पदार्थों का वह गुण है जिसके कारण एक, दो आदि शब्दों का व्यवहार होता है। एक से लेकर ऊपर की ओर अनन्त संख्याएं हैं। परिमाण पदार्थ का वह गुण है जिसके कारण वृहत् एवं लघु का अन्तर स्पष्ट होता है। इसके चार भेद हैं अणु हृस्व दीर्घ एवं महत्। पृथकत्व पदार्थ का वह गुण है जिसके कारण एक वस्तु और दूसरी वस्तु में भेद होता है।
दो पृथक् रहने वाले द्रव्यों के सम्बन्ध को संयोग कहते हैं, जैसे कलम का हाथ के साथ। कारण एवं कार्य के बीच पाए जाने वाले सम्बन्ध को संयोग नहीं कहा जा सकता, क्योंकि कारण के अभाव में कार्य का पृथक् अस्तित्व सम्भव नहीं है। संयोग के तीन भेद हैं -
(i) अन्यतर कर्मज- जहाँ एक द्रव्य आकार दूसरे में मिल जाता है, जैसे पक्षी का उड़कर पेड की डाल पर बैठना।
(ii) उभय कर्मज यहाँ दोनों द्रव्यों की क्रिया से संयोग होता है, जैसे अखाड़े में दो पहलवानों का आपस में भिड़ना।
(iii) संयोगज - यहाँ एक संयोग से दूसरा संयोग होता है, जैसे हाथ, कलम एवं कागज का संयोग।
संयोग का विपरीत विभाग है। संयोग का अन्त या विच्छेद विभाग कहलाता है, इसके तीन भेद है1
अन्यतर कर्मज यहाँ एक द्रव्य की क्रिया से संयोग का अन्त होता है, जैसे- पक्षी का पेड़ की डाल से उड़कर चले जाना।
(2) उभय कर्मज यहाँ दोनों द्रव्यों की क्रिया से संयोग का अन्त होता है, जैसे अखाड़े में दोनो पहलवानों का एक-दूसरे को छोड़कर अलग हो जाना
(3) विभागज यहां एक विभाग से दूसरा विभाग होता है, जैसे कलम छोड़ देने पर हाथ का सम्बन्ध कागज से हट जाता है।
परत्व एवं अपरत्व दो प्रकार के होते हैं कालिक एवं दैशिक। कालिक परत्व का अर्थ है। प्राचीनत्व, कालिक अपरत्व का अर्थ है नवीनत्व | दैशिक परत्व का अर्थ है, दूरत्व तथा दैशिक अपरत्व का अर्थ है निकटत्व। किसी वस्तु के प्रति आसक्ति या अनुराग को इच्छा कहते हैं तथा किसी वस्तु की प्रति विरक्त का विकर्षण को द्वेष कहते है। आत्मा की चेष्टा को प्रयत्न कहते हैं। प्रयत्न तीन प्रकार का होता है.
(i) प्रवृति - किसी वस्तु की प्राप्ति के यत्न को प्रवृत्ति कहते हैं।
(ii) निवृत्ति – किसी वस्तु से छुटकारा पाने के यत्न को निवृत्ति कहते हैं।
(iii) जीवन योनि– प्राण धारण की क्रिया को जीवन योनि प्रयत्न कहते हैं।
वस्तुओं का वह गुण जिसके कारण वे नीचे की ओर प्रवाहित होती हैं, गुरुत्व कहलाता है। बहने • का कारण द्रवत्व कहलाता है। यह स्वाभाविक रूप से जल, दूध आदि तरल पदार्थों में पाया जाता है। स्नेह द्रव्य का वह गुण है जो पार्थिव कणों को आपस में मिलाकर पिण्डीभूत करता है। इसके द्वारा द्रव्यों के कण आपस में संश्लिष्ट हो जाते हैं। यह गुण केवल जल में पाया जाता है।
संस्कार तीन प्रकार के होते हैं-
(i) वेग – इसके कारण किसी वस्तु में गति होती है।
(ii) भावना - इसके कारण किसी विषय की स्मृति या प्रत्याभिज्ञा होती है।
(iii) स्थिति स्थापकत्व- इसके कारण संस्कार, धर्म, अधर्म कोई पदार्थ विक्षोभित होने पर पुनः अपनी पूर्व स्थिति में आ जाता है।
कर्म
कर्म दर्शन का तीसरा भाव है। द्रव्य के मूल गतिशील धर्मों का पारिभाषिक नाम ही कर्म है। कर्म का आधार द्रव्य है तथा यह मूर्त द्रव्यों का गतिशील व्यापार है। कर्म का निवास मूर्त द्रव्यों में ही होता है, इसका निवास विभु द्रव्यों में नहीं होता है, क्योंकि वे स्थान परिवर्तन शून्य होते है। कर्म द्रव्य का सक्रिय रूप है। लेकिन गुण द्रव्य का निष्क्रिय रूप है। कर्म गुण शून्य होता है, क्योंकि गुण द्रव्य में होता है, कर्म में नहीं। कर्म के द्वारा एक द्रव्य का दूसरे द्रव्यों से संयोग भी होता है। इसलिए, कर्म को संयोग एवं . विभाग का साक्षात् कारण माना गया है। कर्म वह है जो द्रव्य में समवेत रहता है, परन्तु गुण से शून्य होता है तथा संयोग एवं विभाग का साक्षात् कारण है। कर्म वह गतिशील व्यापार है जो पदार्थ को स्थानान्तर में पहुँचा देता है।
कर्म गुण से भिन्न है, क्योंकि गुण निष्क्रिय है जबकि कर्म सक्रिय। गुण स्थायी होता है जबकि कर्म क्षणिक गुण को संयोग एवं विभाग का कारण नहीं माना गया है जबकि कर्म को संयोग एवं विभाग का कारण माना गया है। लेकिन, गुण एवं कर्म दोनों का निवास द्रव्य में होता है। द्रव्य के बिना गुण एवं कर्म की कल्पना नहीं की जा सकती है।
कर्म द्रव्य से भी भिन्न है, क्योंकि द्रव्य अपने अस्तित्व के लिए किसी अन्य सत्ता पर निर्भर नहीं करता है जबकि कर्म द्रव्याश्रित होता है। कर्म को पदार्थ इस कारण से कहा गया है कि इसका नामकरण सम्भव है तथा इसके बारे में सोचा जा सकता है।
कर्म की प्रमुख विशेषता कर्म की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(i) कर्म क्षणिक होता है।
(ii) कर्म सभी द्रव्यों में नहीं पाया जाता है। असीमित द्रव्य कर्म रहित होते हैं।
(iii) कर्म केवल सीमित द्रव्यों में ही पाया जाता है।
(iv) कर्म से निश्चित द्रव्यों का निर्माण असम्भव है।
(v) कर्म गुण से शून्य होता है।
(vi) कर्म द्रव्य का गतिशील रूप है।
प्रशस्तपाद ने कर्म के होने के लिए चार मुख्य उपाधियों को स्वीकार किया है - गुरुत्व, तरलता, भावना एवं संयोग।
कर्म के भेद.
कर्म पांच प्रकार के होते हैं
(क) उत्क्षेपण इसके द्वारा वस्तु का संयोग ऊपर के प्रदेश से होता है, जैसे पत्थर को आकाश की ओर फेंकना।
(ख) अवक्षेपण- इसके द्वारा वस्तु का नीचे के प्रदेश से संयोग होता है, जैसे मकान पर से पत्थर को नीचे की ओर फेंकना।
(ग) आकुंचन इस क्रिया के द्वारा वस्तु के अवयव एक-दूसरे के समीप आ जाते हैं जैसे- हाथ-पैर मोड़ना।
(घ) प्रसारण इस क्रिया के द्वारा वस्तु के अवयव एक दूसरे से दूर हो जाते हैं, जैसे मुड़े हुए हाथ पैर को फैलाना।
(ङ) गमन अन्य सभी कर्म इसमें समाविष्ट हैं। उपर्युक्त चारों के अतिरिक्त सभी गत्यर्थक क्रियाएं इसके अन्तर्गत आती हैं।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
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- प्रश्न- जैन धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय बताइए।
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- प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए तथा उसके अस्तित्व को सिद्ध करने सम्बन्धी प्रमाणों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैराग्य क्या है? इसकी भेदों सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन से ईश्वर किन रूपों में कार्य करता है।
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- प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये? तथा न्यायशास्त्र का प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय तर्कशास्त्र में हेत्वाभास के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान' के स्वरूप और प्रकारो की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार सोलह पदार्थों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- प्रमा को परिभाषित करते हुए प्रमा के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रमा की परिभाषा दीजिए तथा उसके सामान्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रमाण की परिभाषा देते हुए प्रमाण के प्रमुख प्रकारों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- न्याय के आलोक में पदार्थ के विभिन्न प्रकारों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- शब्द-प्रमाण में शब्द को स्वतन्त्र प्रमाण माना गया है विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- उपमान प्रमाण के स्वरूप का विवेचन करते हुए इसकी परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- 'न्याय दर्शन' में 'अनुमान प्रमाण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए एवं अनुमान प्रमाण के प्रकारान्तर भेदों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अनुमान क्या है? परमार्थानुमान व स्मार्थानुमान को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रत्यक्ष प्रमाण का स्वरूप क्या है?
- प्रश्न- न्यायदर्शन में निर्विकल्प प्रत्यक्ष का स्वरूप समझाइये।
- प्रश्न- न्यायदर्शन में उपमान प्रमाण का क्या स्वरूप है? न्याय दर्शन में उपमान प्रमाण का स्वरूप
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में अनुमान प्रमाण का खंडन किस प्रकार करता है?
- प्रश्न- अनुमान प्रमाण में व्याप्ति की भूमिका समझाइये।
- प्रश्न- प्रमा और अप्रमा के भेद को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन में कितने प्रमाण स्वीकार किए गए हैं? सभी का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों के नाम लिखिये।
- प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
- प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
- प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन क्या है? न्याय दर्शन और वैशेषिक दर्शन में आपस में क्या सम्बन्ध है? वैशेषिक दर्शन में सात प्रकार के पदार्थ बताइए।
- प्रश्न- व्याप्ति क्या है? व्याप्ति की स्थापना किस प्रकार होती है?
- प्रश्न- 'गुण' और 'कर्म' पदार्थों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन के स्वरूप पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन में अनुमान का क्या स्वरूप है?
- प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- संयोग और समवाय पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मीमांसा से क्या तात्पर्य है इसे भली-भाँति समझाइये।
- प्रश्न- पूर्व मीमांसा किसे कहते हैं?
- प्रश्न- द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसा दर्शन में ज्ञान के कितने साधन माने गये हैं?
- प्रश्न- उपमान किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अर्थापत्ति किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अनुपलब्धि या अभाव किसे कहते हैं?
- प्रश्न- मीमांसा के तत्व विचार की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसकों ने 'आत्मा' का क्या स्वरूप बतलाया है?
- प्रश्न- शंकराचार्य ने ब्रह्म के कितने स्वरूपों की व्याख्या की है?
- प्रश्न- ब्रह्म और माया क्या है?
- प्रश्न- ब्रह्म और जीव क्या हैं?
- प्रश्न- माया में कितनी शक्तियों का समावेश है?
- प्रश्न- "ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या" शंकर के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? शंकर के ब्रह्म और जगत सम्बन्धी विचारों के सन्दर्भ में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अद्वैत दर्शन में जीव के बंधन और मोक्ष पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- प्रभाकर मत में अख्यातिवाद क्या है? और यह किस प्रकार भट्ट मत के विपरीत ख्यातिवाद से भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शंकर का अद्वैत वेदान्त क्या है?
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त में निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म में क्या भेद बताया गया है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शंकर के 'ईश्वर' विचार की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- जीव किसे कहते हैं?
- प्रश्न- शंकर के अद्वैतवाद तथा रामानुज के विशिष्ट द्वैतवाद में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन किसे कहते हैं? शंकर के वेदान्त दर्शन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- क्या विश्व शंकर के अनुसार वास्तविक है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज शंकर के मायावाद का किस प्रकार खण्डन करते हैं?
- प्रश्न- शंकर की ज्ञान मीमांसा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शंकर के ईश्वर विचार की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- माया क्या है? माया सिद्धान्त की रामानुज द्वारा दी गई आलोचना का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के विशिष्टाद्वैत वेदान्त से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार ब्रह्म क्या है? ईश्वर व ब्रह्म में भेद बताइए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार मोक्ष व उनके साधनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जीवात्मा के भेदों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार ज्ञान के साधन क्या हैं?
- प्रश्न- रामानुज के 'जीव सम्बन्धी विचार की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- रामानुज के जगत की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशिष्ट द्वैत दर्शन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- चित् व अचित् तत्व क्या हैं?
- प्रश्न- बन्धन और मोक्ष क्या है?
- प्रश्न- चित्त क्या है?